क्या चीन की डिजिटल करेंसी अमरीकी डॉलर को ख़त्म कर देगी?

 25 May 2020 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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चीन 2022 में एक डिजिटल युआन मुद्रा लाना चाहता है जिसका नाम ई-आरएमबी है।

2022 में चीन जाने वाले लोगों को इस नई डिजिटल करेंसी में ही ख़रीदारी या लेन-देन करना पड़ सकता है। गौतलब है कि 2022 में चीन की राजधानी बीजिंग में विंटर ओलंपिक का आयोजन होगा।

एक ऐसे समय में जब दुनिया का हर देश कोरोना वायरस के प्रसार से जूझ रहा है, चीन डिजिटल युआन पर पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च करने में जुटा था।

पिछले महीने चीन के केंद्रीय बैंक, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने चार बड़े शहरों- शेन्ज़ेन, चेंग्दू, सूज़ो और जिओनगान में इस पर काम शुरू कर दिया।

इस परियोजना में सरकारी कर्मचारियों के वेतन का कुछ हिस्सा डिजिटल युआन में दिया जाएगा।

इसके अलावा लगभग 20 निजी व्यवसायों, जैसे स्टारबक्स और मैकडॉनल्ड, ने भी इस प्रयोग में हिस्सा लिया है।

अगर ये कामयाब रहा, तो चीन सरकार 2022 में इसे विंटर ओलंपिक के समय सारे देश में जारी कर देगी।

हालाँकि ये चरणबद्ध तरीक़े से किया जाएगा और इसमें कई साल लग सकते हैं।

इस प्रोजेक्ट पर काम 2014 में शुरू हुआ था। चीन इसे लागू करने में काफ़ी तेज़ी दिखा रहा है।

इसके तीन मुख्य कारण हो सकते हैं: अमरीका के साथ बढ़ता ट्रेड वॉर, कोरोना वायरस को लेकर अमरीका और पश्चिमी देशों का चीन पर लगातार लगता इल्ज़ाम और फ़ेसबुक की डिजिटल करेंसी लिब्रा के इस साल लाने की तैयारी।

डिजिटल युआन को लाना एक ऐसी बात मानी जा रही है जिससे वैश्विक संतुलन में बदलाव आ सकता है। ये चीन की उन महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का हिस्सा है जिनका उद्देश्य अमरीका के प्रभाव को ख़त्म करना और 21वीं सदी का एक शक्तिशाली देश बन कर उभरना है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इसके सफल प्रयोग से 10-15 वर्षों में एक नयी राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था जन्म ले सकती है।

दिल्ली स्थित फ़ोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के चीन विशेषज्ञ डॉ. फ़ैसल अहमद कहते हैं, "भारत और अमरीका भी क्रमशः 'लक्ष्मी' और 'डिजिटल डॉलर' नाम की अपनी डिजिटल मुद्राओं पर काम कर रहे हैं। लेकिन अभी तक ये वास्तविकता से काफ़ी दूर हैं।''  

फ़िलहाल तो चीनी ड्रैगन ने भारतीय लक्ष्मी को काफ़ी पीछे छोड़ दिया है।

लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक़ चीन के डिजिटल करेंसी ने अमेरिकी डॉलर को भी खतरे में डाल दिया है जो मुद्रा जगत का फ़िलहाल बादशाह है।  

मुंबई स्थित चूड़ीवाला सेक्युरिटीज़ के आलोक चूड़ीवाला कहते हैं, ''अमरीकी फ़ेडरल रिज़र्व के ख़रबों डॉलर के कर्ज़ों को देखें तो डॉलर अपने असली मूल्य से काफ़ी महंगा है (ओवर-वैल्यूड)। एक नई मुद्रा का निश्चित रूप से स्वागत है लेकिन इसकी वैश्विक स्वीकृति में एक लंबा समय लगेगा।''

प्रवीण सिंगापुर-स्थित मॉड्युलर एसेट मैनेजमेंट के पोर्टफोलियो मैनेजर हैं और दुनिया भर की मुद्राओं से डील करते हैं।

वो कहते हैं, "डिजिटल युआन निश्चित रूप से अमरीकी डॉलर से दूरी बनाने की तरफ़ एक बड़ा क़दम है। वर्तमान में अमरीकी डॉलर दुनिया की प्रचलित मुद्रा है और ऐसा 1970 के दशक की शुरुआत में गोल्ड स्टैंडर्ड के अंत के बाद से है।''

वो आगे कहते हैं, "अमरीका-चीन के ट्रेड वॉर और अब कोरोना महामारी के विवाद के कारण बढ़ता अवैश्वीकरण डॉलर के लिए ख़तरा है। हालांकि, तत्काल किसी और विकल्प के अभाव के कारण इस परिवर्तन में समय लगेगा। दुनिया को निश्चित रूप से चीन के क़दम पर ध्यान रखना होगा।''

फ़िलहाल अमरीकी डॉलर की अहमियत का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि साल 2019 में अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक लेन-देन का लगभग 90 प्रतिशत कारोबार अमरीकी डॉलर में हुआ।

इसकी तुलना में चीनी युआन वैश्विक भुगतान और भंडार का केवल 2 प्रतिशत था।

दूसरी तरफ़ दुनिया के सभी रिज़र्व भंडार का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अमरीकी डॉलर में है।

भारत का 487 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार भी अमरीकी डॉलर में ही है।

चीन के ख़ज़ाने में तीन खरब डॉलर भी अमरीकी मुद्रा में है।

डॉ फ़ैसल अहमद का मानना है कि चीन इसे कई तरीके से इस्तेमाल कर सकता है जिससे इसकी साख बढ़ेगी।

वो कहते हैं, ''चीन भू-राजनीतिक फ़ायदे के लिए दूसरे देशों को प्रोत्साहन पैकेज देने और मध्य एशिया से लेकर आर्कटिक क्षेत्र तक के बेल्ट एंड रोड (BRI) प्रोजेक्ट में शामिल देशों में निवेश करने के लिए इस करेंसी का इस्तेमाल कर सकता है।''

फ़िलहाल अमरीका डॉलर के प्रभाव और इसकी अहमियत का मतलब ये है कि अमरीका दुनिया की राजनैतिक और आर्थिक मुद्दों में अपना दबदबा बनाए रखेगा।

उदाहरण के लिए, ईरान, रूस, उत्तर कोरिया और अन्य देशों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय व्यापार और बैंकों की अमरीकी डॉलर पर निर्भरता के कारण संभव है।

डॉयचे बैंक ने इस साल जनवरी के अंत में डिजिटल मुद्राओं पर एक ख़ास रिपोर्ट जारी की थी जिसमें सुझाव दिया गया था कि चीनी डिजिटल युआन वैश्विक पावर संतुलन को उलट सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया, "चीन अपने केंद्रीय बैंक की मदद से एक डिजिटल मुद्रा पर काम कर रहा है जिसे सॉफ्ट या हार्ड-पावर टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। वास्तव में, अगर चीन में व्यापार करने वाली कंपनियों को डिजिटल युआन अपनाने के लिए मजबूर किया जाता है तो ये निश्चित रूप से वैश्विक वित्तीय बाज़ार में डॉलर की प्रधानता को नष्ट कर सकता है।''

रिपोर्ट में कहा गया है, "बीसवीं सदी की शुरुआत में जिस तरह से अमरीका ने डॉलर को बढ़ावा दिया था उसी तरह से चीन सरकार अब रेनमिनबी RMB (चीन की आधिकारिक मुद्रा जिसकी इकाई युआन है) के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए ज़बरदस्त प्रयास कर रही है। साल 2000 से 2015 तक, चीन के व्यापारिक लेन-देन में RMB का हिस्सा शून्य से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गया।''

डॉयचे बैंक ने सुझाव दिया कि डिजिटल युआन और इसी तरह की डिजिटल मुद्राएं नकदी को समाप्त नहीं कर सकती हैं लेकिन क्रेडिट कार्ड जैसे तीसरे पक्ष के अंत का कारण बन सकती हैं।

प्रवीण कहते है, "भुगतान के अन्य तरीकों के विपरीत, इसका उपयोग इंटरनेट कनेक्शन के बिना भुगतान के लिए किया जा सकता है। ये वास्तविक नकदी की तरह है मगर एक डिजिटल दुनिया में।''

वह आगे बताते है, "डिजिटल युआन की सफलता इस बात पर टिकी होगी कि आम इंसान, खुदरा व्यापारी, कॉर्पोरेशन, सरकारें और अन्य देश इसे किस तेज़ी से अपनाते हैं।''

मगर वर्चुअल दुनिया में एक शक्ति बन कर उभरने वाली मुद्राओं में फ़ेसबुक के लिब्रा और डिजिटल युआन के अलावा भी कई वर्चुअल करेंसी मौजूद हैं और कई पर काम चल रहा है।

बिटकॉइन बाज़ार में पहले से ही मौजूद है और इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।

भारत ने क्रिप्टो मुद्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन रिज़र्व बैंक डिजिटल मुद्रा लक्ष्मी के बारे में गंभीरता से सोच रहा है।

डॉयचे बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, "इस समय मुख्य धारा की डिजिटल मुद्राएं फ़ेसबुक की लिब्रा और चीनी सरकार की डिजिटल युआन हैं।  फ़ेसबुक के लगभग 2.5 अरब यूज़र हैं जो दुनिया की आबादी का एक तिहाई हिस्सा है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि फेसबुक के सभी यूजर उसके डिजिटल करेंसी का प्रयोग करेंगे। चीन की 1.4 अरब से अधिक आबादी है। इस वजह से चीन की डिजिटल मुद्राओं को मुख्यधारा में आगे बढ़ाने की क्षमता है।''

लेकिन फेसबुक सहित अन्य डिजिटल मुद्राओं और डिजिटल युआन के बीच महत्वपूर्ण अंतर ये है कि डिजिटल युआन को चीन का केंद्रीय बैंक जारी करेगा जिससे इसे स्वीकृति मिलेगी और इस पर विश्वास बढ़ेगा। लेकिन बाकी डिजिटल करेंसी को निजी कंपनी जारी करता है या करेगा।

अन्य सभी डिजिटल मुद्राएं विकेंद्रीकृत हैं और किसी भी नियामक प्राधिकरण के दायरे में नहीं आती हैं।

डॉ फ़ैसल अहमद कहते हैं, "डिजिट़ल युआन लिब्रा जैसी अन्य मुद्राओं से अलग एक राज्य समर्थित मुद्रा है। इसके राजनीतिक असर भी होंगे।  उदाहरण के लिए, डिजिटल युआन के इस्तेमाल से उत्तर कोरिया जैसे देशों को अमरीकी प्रतिबंधों से बचने में मदद मिलेगी।''

भारत की अपनी डिजिटल मुद्रा लक्ष्मी की सोच 2014 में पैदा हुई थी।  उसी वर्ष चीन में डिजिटल युआन का भी विचार पैदा हुआ था।

लेकिन भारत की लक्ष्मी के लांच के लिए पहले इस मुद्दे पर गठित कई समितियों की रिपोर्ट का इंतज़ार करना पड़ेगा।

एक विशेषज्ञ ने कहा, "भारत डिजिटल वॉलेट को बढ़ावा दे रहा है जबकि चीन डिजिटल मुद्रा लांच करने वाला है।''

प्रवीण कहते हैं, ''डिजिटल युआन को ख़तरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे डिजिटल नेटवर्क में क्रांति के रूप में देखना चाहिए।  भारत ने भी AEPS (आधार सक्षम भुगतान प्रणाली) और UPI (एकीकृत भुगतान प्रणाली) को स्थानीय तौर पर इस्तेमाल से डिजिटल क्रांति को आगे बढ़ाया है।''

फ़ायदे ये हैं कि इसकी नक़ल नहीं की जा सकती, लेन-देन तत्काल हो सकता है, अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन का ख़र्च न के बराबर होगा, सभी लोग इस्तेमाल कर सकेंगे।

और नुक़सान ये है कि इसमें लोगों को जल्दी भरोसा नहीं होगा, आबादी के सबसे ग़रीब तबके तक इसकी पहुँच नहीं होगी और ये डिजिटल वॉलेट पर निर्भर होगा।

जानकार कहते हैं, जैसै-जैसे टेक्नोलॉजी का विकास होगा, डिजिटल करेंसी के फायदे भी बढ़ेंगे।

आलोक चूड़ीवाला कहते है, ''किसी भी सिस्टम पर लोगों का भरोसा बनने में एक लंबा समय लगता है। अमरीकी डॉलर 1770 से वजूद में है। इसकी लोकप्रियता पहले विश्व युद्ध के समय से बढ़ने लगी और दूसरे विश्व युद्ध तक ये दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मुद्रा बन गई।''

हर कोई डॉलर पर भरोसा करता है और हर कोई इसे महत्व देता है। लेकिन अगर अमरीका की दुनिया में धाक कम हो रही है तो कोई और ताक़त इसकी जगह लेगी। चीन उस दौड़ में काफ़ी आगे नज़र आता है।

 

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