जो बाइडन का अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से मोदी सरकार पर क्या असर पड़ेगा?

 08 Nov 2020 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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मोदी और ट्रंप की दोस्ती की चर्चा तो पूरे कार्यकाल में रही लेकिन मोदी का ट्रम्प के समर्थन में 'हौदी मोदी' और 'नमस्ते ट्रम्प' कैंपेन के बाद बाइडन प्रशासन के साथ कैसे रिश्ते बनते हैं? ये देखना बाक़ी है। हालाँकि जो बाइडन अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को हरा कर जीत चुके हैं।

हालाँकि कहा जा रहा है कि भारत और अमेरिका अहम साझेदार हैं। ऐसे में सरकार बदलने से भारत के साथ रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बाइडन को राष्ट्रपति चुनाव में जीत की बधाई दी है। मोदी ने जो बाइडन की जीत को शानदार बताया है। भारतीय प्रधानमंत्री ने कमला हैरिस को भी बधाई दी और भारत से उनकी जड़ों को भी याद किया। कमला हैरिस की माँ तमिलनाडु की थीं।

मोदी ने जो बाइडन को बधाई देते हुए ट्विटर पर लिखा, ''आपकी शानदार जीत पर @JoeBiden को बधाई! वीपी के रूप में, भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में आपका योगदान महत्वपूर्ण और अमूल्य था। मैं भारत-अमेरिका संबंधों को अधिक से अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए एक बार फिर साथ मिलकर काम करने की आशा करता हूं।''

मोदी ने कमला हैरिस को बधाई देते हुए ट्विटर पर लिखा, ''हार्दिक बधाई @KamalaHarris ! आपकी कामयाबी बेहतरीन है। आपकी जीत से न केवल भारत स्थित आपके रिश्तेदारों गौरवान्वित हैं बल्कि सभी भारतीय-अमेरिकी नागरिकों के लिए गौरव का पल है। मुझे विश्वास है कि आपके समर्थन और नेतृत्व से जीवंत भारत-अमेरिका संबंध और भी मजबूत हो जाएंगे।

बाइडन ने कश्मीर और सीएए पर चिंता जताई थी

हालांकि बाइडन ने अपने चुनावी कैंपेन में कश्मीर और सीएए को लेकर चिंता ज़ाहिर की थी। बाइडन ने चुनावी कैंपेन के दौरान अपना पॉलिसी पेपर जारी किया था। उसमें सीएए और कश्मीर में मानवाधिकारों को लेकर चिंता जताई थी। जो बाइडन ने कहा था कि कश्मीरियों के सभी तरह के अधिकार बहाल होने चाहिए।

बाइडन ने कहा था कि कश्मीरियों के अधिकारों को बहाल कराने के लिए जो भी क़दम उठाए जा सकते हैं उसे भारत उठाए।  इसके साथ ही बाइडन ने भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए को लेकर भी निराशा ज़ाहिर की थी। बाइडन ने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न यानी एनआरसी को भी निराशाजनक कहा था।

 जो बाइडन की कैंपेन वेबसाइट पर प्रकाशित एक पॉलिसी पेपर में कहा गया था, ''भारत में धर्मनिरपेक्षता और बहु-नस्ली के साथ बहु-धार्मिक लोकतंत्र की पुरानी पंरपरा है। ऐसे में सरकार के ये फ़ैसले बिल्कुल ही उलट हैं।''

जो बाइडन का यह पॉलिसी पेपर 'एजेंडा फ़ॉर मुस्लिम-अमरीकन कम्युनिटीज़' टाइटल से प्रकाशित हुआ था। कश्मीर को लेकर बाइडन के इस पॉलिसी पेपर में कहा गया था, ''कश्मीर के लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए भारत को चाहिए कि वो हर क़दम उठाए। असहमति पर पाबंदी, शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकना, इंटरनेट सेवा बंद करना या धीमा करना लोकतंत्र को कमज़ोर करना है।''

इस पेपर में कश्मीर के साथ चीन के वीगर मुसलमानों और म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भी बात कही गई थी। बाइडन के पॉलिसी पेपर में लिखा गया था, ''मुस्लिम बहुल देशों और वे देश जहां मुसलमानों की आबादी अच्छी-ख़ासी है, वहां जो कुछ भी हो रहा है उसे लेकर अमरीका के मुसलमान चिंतित रहते हैं। मैं उनके उस दर्द को समझता हूं। पश्चिमी चीन में वीगर मुसलमानों को निगरानी कैंपों में रहने पर मजबूर करना बहुत ही शर्मनाक है। अगर बाइडन अमरीका के राष्ट्रपति बनते हैं तो वो शिन्जियांग में नज़रबंदी कैंपों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगे। राष्ट्रपति के तौर पर बाइडन इसे लेकर कोई ठोस क़दम उठाएंगे। म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जो कुछ भी हुआ और हो रहा वो वीभत्स है। इससे शांति और स्थिरता दांव पर लगी है।''

ट्रंप ने भी झटके दिए थे

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भी कई ऐसी नीतिया रही हैं जिनसे भारत को नुक़सान हुआ है। ट्रंप सरकार ने अपनी प्रिफ्रेंशियल ट्रेड पॉलिसी (कारोबार में तवज्जो) के जनरल सिस्टम ऑफ़ प्रिफरेंसेज़ में से भारत को बाहर कर दिया था। इस नीति की वजह से भारत से अमरीका जाने वाले 1930 उत्पाद अमरीका में आयात शुल्क देने से बच जाते थे। साल 1970 के दशक में अमरीकी सरकार ने विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने के मंसूबे के साथ इस नीति को अपनाया था। इसके अलावा एचबी1 वीज़ा पर भी ट्रंप की नीतियां भारत के ख़िलाफ़ रही हैं।

लेकिन ट्रंप प्रशासन सीएए, एनआरसी और कश्मीर को लेकर चुप रहा था।  इस मामले में पाकिस्तान ने अमेरिका पर दबाव बनाने की कोशिश की थी लेकिन ट्रंप प्रशासन पर इसका असर नहीं पड़ा था।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती को देखते हुए कहा जा सकता है कि जो बाइडन भारत के लिए अच्छे साबित होंगे, लेकिन बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए अच्छे साबित नहीं होंगे।

 

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