वैक्सीन राष्ट्रवाद: भारत में दो कोरोना वैक्सीन को मिली मंज़ूरी पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

 04 Jan 2021 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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भारत में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ने 03 जनवरी 2021 को सीओवीआईडी- 19 के इलाज के लिए दो वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दे दी।

ये दो वैक्सीन हैं- कोविशील्ड और कोवैक्सीन। कोविशील्ड जहां असल में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका का भारतीय संस्करण है वहीं कोवैक्सीन पूरी तरह भारत की अपनी वैक्सीन है जिसे स्वदेशी वैक्सीन भी कहा जा रहा है।

कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया कंपनी बना रही है। वहीं, कोवैक्सीन को भारत बायोटेक कंपनी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर बना रही है।

ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड को आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी ब्रिटेन में मिलने के बाद ऐसी पूरी संभावना थी कि कोविशील्ड को भारत में मंज़ूरी मिल जाएगी और आख़िर में यह अनुमति मिल गई।

लेकिन इसके साथ ही और इतनी जल्दी कोवैक्सीन को भी भारत में अनुमति मिल जाएगी इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।

कोवैक्सीन को इतनी जल्दी अनुमति दिए जाने के बाद कांग्रेस पार्टी समेत कुछ स्वास्थ्यकर्मियों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

03 जनवरी 2021 को कोविशील्ड और कोवैक्सीन को अनुमति दिए जाने के बाद कई लोगों ने सवाल उठाए कि दोनों वैक्सीन के तीसरे ट्रायल के आँकड़े जारी किए बिना अनुमति कैसे दे दी गई?

तीसरे चरण के ट्रायल में बड़ी संख्या में लोगों पर उस दवा को टेस्ट किया जाता है और फिर उससे आए परिणामों के आधार पर पता लगाया जाता है कि वो दवा कितने प्रतिशत लोगों पर असर कर रही है।

पूरी दुनिया में जिन तीन वैक्सीन फ़ाइज़र बायोएनटेक, ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजे़नेका और मोडेर्ना की चर्चा है, उनके फ़ेस-3 ट्रायल के आँकड़े अलग-अलग हैं। ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन को 70 फ़ीसदी तक कारगर बताया गया है।

भारत में कोवैक्सीन के अलावा कोविशील्ड कितने लोगों पर कारगर है इस पर भी सवाल उठे हैं लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन होने के कारण इसको उस शक की नज़र से नहीं दे खा जा रहा है जितना कोवैक्सीन को देखा जा रहा है।

कोविशील्ड के भारत में 1,600 वॉलंटियर्स पर हुए फ़ेस-3 के ट्रायल के आँकड़ों को भी जारी नहीं किया गया है। वहीं, कोवैक्सीन के फ़ेस एक और दो के ट्रायल में 800 वॉलंटियर्स पर इसका ट्रायल हुआ था जबकि तीसरे चरण के ट्रायल में 22,500 लोगों पर इसको आज़माने की बात कही गई है। लेकिन इनके आँकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।

कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दिए जाने के बाद कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट करते हुए कहा कि कोवैक्सीन का अभी तक तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ है, बिना सोच-समझे अनुमति दी गई है जो कि ख़तरनाक हो सकती है।

उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को टैग करते हुए लिखा, ''डॉक्टर हर्षवर्धन कृपया इस बात को साफ़ कीजिए। सभी परीक्षण होने तक इसके इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए। तब तक भारत एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन के साथ शुरुआत कर सकता है।''

कांग्रेस नेता का यह ट्वीट करना ही था कि भारत में वैक्सीन पर सवाल उठने शुरू हो गए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी कोवैक्सीन और लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं जताईं।

मुंबई में संक्रामक रोगों के शोधकर्ता डॉक्टर स्वप्निल पारिख कहते हैं कि डॉक्टर इस समय मुश्किल स्थिति में हैं।

उन्होंने कहा, ''मैं समझता हूं कि यह समय नियामक बाधाओं को दूर कर प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी करने का है।''

डॉक्टर पारिख ने कहा, ''सरकार और नियामकों को डेटा को लेकर पारदर्शी होने की ज़िम्मेदारी है, जिसकी उन्होंने वैक्सीन को अनुमति देने से पहले समीक्षा की, क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो ये लोगों के भरोसे को प्रभावित करेगा।''

विपक्ष और कई स्वास्थ्यकर्मियों के सवालों के बाद भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन सामने आए और उन्होंने लगातार कई ट्वीट करते हुए कोवैक्सीन के असरदार होने पर तर्क दिए।

सबसे पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा, ''शशि थरूर, अखिलेश यादव और जयराम रमेश सीओवीआईडी-19 वैक्सीन को अनुमति देने के लिए विज्ञान समर्थित प्रोटोकॉल का पालन किया गया है।''

इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कोवैक्सीन के समर्थन में कई तर्क देते हुए कई ट्वीट किए हालांकि उन्होंने तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़ों का ज़िक्र इन ट्वीट में नहीं किया।

उन्होंने लिखा कि पूरी दुनिया में वैक्सीन को जिन एनकोडिंग स्पाइक प्रोटीन के आधार पर अनुमति दी जा रही है जिसका असर 90 फ़ीसदी तक है वहीं कोवैक्सीन में निष्क्रिय वायरस के आधार पर स्पाइक प्रोटीन के अलावा अन्य एंटीजेनिक एपिसोड होते हैं तो यह सुरक्षित होते हुए उतनी ही असरदार है जितना बाक़ियों ने बताया।

इसके साथ ही हर्षवर्धन ने बताया कि कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नए वैरिएंट पर भी असरदार है।

हर्षवर्धन ने ट्वीट करके यह भी बताया कि कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी (ईयूए) शर्तिया आधार पर दी गई है।

उन्होंने ट्वीट में लिखा, ''क्लीनिकल ट्रायल मोड में कोवैक्सीन के लिए ईयूए सशर्त दिया गया है। कोवैक्सीन को मिली ईयूए कोविशील्ड से बिलकुल अलग है क्योंकि यह क्लीनिकल ट्रायल मोड में इस्तेमाल होगी। कोवैक्सीन लेने वाले सभी लोगों को ट्रैक किया जाएगा उनकी मॉनिटरिंग होगी अगर वे ट्रायल में हैं।''

कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटैक के चेयरमैन कृष्ण इल्ला ने बयान जारी किया है, ''हमारा लक्ष्य उन आबादी तक वैश्विक पहुंच प्रदान करना है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।''

उन्होंने बयान में कहा, ''कोवैक्सीन ने अद्भुत सुरक्षा आँकड़े दिए हैं जिसमें कई वायरल प्रोटीन ने मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दी है।''

हालांकि, कंपनी और डीसीजीआई ने भी कोई ऐसे आंकड़े नहीं दिए हैं जो बता पाएं कि वैक्सीन कितनी असरदार और सुरक्षित है लेकिन समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक सूत्र ने बताया कि इस वैक्सीन की दो ख़ुराक का असर 60 फ़ीसदी से अधिक है।

दिल्ली एम्स के प्रमुख डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा है कि वो आपातकालीन स्थिति में कोवैक्सीन को एक बैकअप के रूप में देखते हैं और फ़िलहाल कोविशील्ड मुख्य वैक्सीन के रूप में इस्तेमाल होगी।

दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया के बयान को न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने ट्वीट किया, ''आपातकालीन स्थिति में जब मामलों में अचानक वृद्धि होती है और हमें टीकाकरण करने की आवश्यकता होती है, तो भारत बायोटेक वैक्सीन का उपयोग किया जाएगा। इसका उपयोग एक बैकअप के रूप में भी किया जा सकता है, जब हम यह सुनिश्चित नहीं करते हैं कि सीरम इंस्टीट्यूट का वैक्सीन कितना प्रभावी हो रहा है।''

गुलेरिया के इस बयान पर पत्रकार तवलीन सिंह ने रीट्वीट करते हुए लिखा है, ''इसका क्या मतलब है? अगर टीकाकरण को बैकअप की ज़रूरत है तो फिर वैक्सीन का क्या मतलब है।''

उन्होंने कहा कि तब तक कोवैक्सीन की और दवाएं तैयार होंगी और वो फ़ेज-3 के मज़बूत डेटा इस्तेमाल करेंगे जो बताएगा कि यह कितनी सुरक्षित और असरदार है लेकिन शुरुआती कुछ सप्ताह के लिए कोविशील्ड इस्तेमाल की जाएगी जिसकी पाँच करोड़ ख़ुराक मौजूद है।

कोवैक्सीन भारत की वैक्सीन है। जबकि कोविशील्ड भी भारत में बन रही है लेकिन वो मूल रूप से ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन है।

दोनों वैक्सीन को अनुमति मिलने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट में लिखा कि जिन दो वैक्सीन के इमर्जेंसी इस्तेमाल को मंज़ूरी दी गई है, वे दोनों मेड इन इंडिया हैं, यह आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने के लिए हमारे वैज्ञानिक समुदाय की इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

पत्रकार शेखर गुप्ता ने भी वैक्सीन राष्ट्रवाद को लेकर कहा है, ''जब चीन और रूस ने लाखों लोगों को तीसरे चरण के ट्रायल का डेटा सार्वजनिक किए बिना वैक्सीन लगाई और अब भारत ने भी तीसरे चरण के ट्रायल की समीक्षा किए बिना इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। यह खतरनाक कदम है। एक ग़लती से वैक्सीन के भरोसे को भारी नुक़सान हो सकता है।''

अब इन दोनों वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी मिलने के बाद इसे सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और फ़्रंटलाइन कर्मचारियों को दिया जाएगा।

भारत का लक्ष्य जुलाई 2021 तक 30 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका लगाने का है।

 

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