साइरस मिस्त्री को नेशनल कंपनी लॉ अपेलैट ट्राइब्यूनल (एनसीएलएटी) ने बुधवार को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बहाल कर दिया।
ट्राइब्यूनल ने यह भी कहा है कि एन चंद्रा को टाटा ग्रुप का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाया जाना अवैध था। एनसीएलएटी की दो जजों की बेंच ने कहा कि मिस्त्री के ख़िलाफ़ रतन टाटा ने मनमाने तरीक़े से कार्रवाई की थी और नए चेयरमैन की नियुक्ति अवैध थी। टाटा ग्रुप 110 अरब डॉलर की कंपनी है।
रतन टाटा को इस फ़ैसले को चुनौती देने के लिए चार हफ़्ते का वक़्त दिया गया है। ट्राइब्यूनल ने कहा है कि उसका फ़ैसला चार हफ़्ते बाद ही लागू होगा।
टाटा के पास इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती देने का विकल्प है। जैसे ही यह ख़बर आई टाटा मोटर्स के शेयर गिरने लगे। मिस्त्री परिवार की टाटा सन्स में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। मिस्त्री परिवार की टाटा सन्स में 18.4 फ़ीसदी हिस्सेदारी है।
साइरस मिस्री टाटा सन्स के छठे चेयरमैन थे। उन्हें अक्टूबर 2016 में हटा दिया गया था। साइरस मिस्त्री को 2012 में रतन टाटा के रिटायरमेंट के बाद टाटा ग्रुप की कमान मिली थी।
मिस्त्री को जब हटाया गया था तो उन्होंने दावा किया था कि कंपनी एक्ट का उल्लंघन कर उनकी बर्खास्तगी हुई है। इसके साथ ही उन्होंने टाटा सन्स के प्रबंधन में गड़बड़ी का भी आरोप लगाया था।
एनसीएलएटी ने यह भी कहा है कि टाटा सन्स का पब्लिक से प्राइवेट कंपनी बनना ग़ैर-क़ानूनी था। एनसीएलएटी ने फिर से पब्लिक कंपनी बनने का आदेश दिया है।
कहा जा रहा है कि इस फ़ैसले से टाटा एक बार फिर से क़ानूनी दाँव-पेच में फँस गया है और इससे कंपनी का मुनाफ़ा प्रभावित होगा। टाटा इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में लेकर जाएगा लेकिन इसका असर निवेशकों पर पड़ेगा।
टाटा के कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर भी सवाल उठने की आशंका जताई जा रही है।
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