भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 30 सितम्बर 2022 को कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई को रोकने वाले कानून जो कुछ भी सुरक्षा देने का काम करते हैं उन्हें सबसे ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। ऐसे कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
12 नवंबर, 2021 को त्रिपुरा सरकार ने प्रिवेंटिव डिटेंशन का एक आदेश पारित किया था। इस आदेश को रद्द करते हुए चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने ये टिप्पणी की है।
साथ ही कोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1988 के तहत डिटेंशन में लिए गए अभियुक्त को तुरंत रिहा करने का भी निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन के समय हिरासत में लेने वाले अधिकारियों के साथ साथ उसे एक्जिक्यूट करने वाले अधिकारियों को सतर्क रहने की जरूरत है।
(आईबीटीएन के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)
शेयरिंग के बारे में
ये कहना गलत है कि भारत में साल 2014 से पहले कुछ नहीं हुआ: अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़...
कच्छतीवु द्वीप पर पीएम मोदी का बयान: कांग्रेस ने विदेश मंत्री जयशंकर के रुख़ पर उठा...
सुप्रीम कोर्ट की ईडी पर सख्त टिप्पणी- बिना सुनवाई सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर कर-कर ...
भारत की केंद्र सरकार ने फ़ैक्ट चेकिंग यूनिट के गठन की अधिसूचना जारी की
...असम में सीएए विरोधी प्रदर्शन में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के पुतले फूंके गए, सैकड़ों...