आर्मीनिया, अज़रबैजान और रूस ने 9 नवंबर 2020 को देर रात नागोर्नो-काराबाख़ के विवादित हिस्से पर सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है।
आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने इस समझौते को 'अपने और अपने देशवासियों के लिए दर्दनाक बताया है'।
छह सप्ताह से अज़रबैजान और जातीय अर्मीनियाई लोगों के बीच जारी इस युद्ध के बाद अब ये समझौता किया गया है।
नागोर्नो-काराबाख़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अज़रबैजान का हिस्सा है मगर 1994 से नागोर्नो-काराबाख़ पर अर्मीनिया और वहाँ रहने वाले जातीय अर्मीनियाई लोगों का कब्ज़ा है।
1994 में दोनों देशों के बीच शांति समझौता ना कर युद्ध विराम पर समझौता किया गया था।
27 सितंबर 2020 में फिर से युद्ध शुरू होने के बाद कई संघर्ष विराम समझौते हुए, लेकिन उनमें से सभी विफल रहे हैं।
इस समझौते में क्या है?
9 नवंबर 2020 को देर रात हुए इस समझौते के तहत, अज़रबैजान नागोर्नो-काराबाख़ के उन क्षेत्रों को अपने पास ही रखेगा जो उसने संघर्ष के दौरान अपने कब्ज़े में लिया है।
अगले कुछ हफ़्तों में आस पास के कई इलाकों से आर्मीनिया भी पीछे हटने को तैयार हो गया है।
टेलीविजन के माध्यम से संबोधन में रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन ने कहा है कि 1960 रूसी शांति सैनिक इलाके में भेजे जा चुके हैं।
अज़रबैजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव ने कहा है कि इस शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में तुर्की भी भाग लेगा।
इसके अलावा समझौते के मुताबिक़ युद्ध बंदियों को भी एक-दूसरे को सौंपा जाएगा।
राष्ट्रपति अलीयेव ने कहा कि इस समझौते का ऐतिहासिक महत्व है। जिस पर आर्मीनिया भी ना चाहते हुए ही सही लेकिन राज़ी हो गया है।
वहीं आर्मीनिया के प्रधानमंत्री पाशिन्यान ने कहा है कि ये समझौता हालात को देखते हुए इस इलाके के जानकारों से बात करके और गहन विश्लेषण के बाद लिया गया है।
उन्होंने कहा, ये जीत नहीं है लेकिन जब तक आप अपने आपको हारा हुआ नहीं मान लें तब तक ये हार भी नहीं है।
आर्मीनिया की राजधानी येरेवान में बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं और इस समझौते का विरोध कर रहे हैं।
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