भारत में आर्थिक तबाही का तूफ़ान आना अभी बाकी है!

 04 Jun 2020 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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कोरोना महामारी ने भारत की आर्थिक सेहत पर भी बहुत बुरा असर डाला है। इस बात से भारत सरकार भी इनकार नहीं कर रही है और कह रही है कि वो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।

लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था जिन राज्यों पर टिकी है, उनकी नींव कोरोना ने हिलाकर रख दी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि भारत का आर्थिक पुनर्जीवन कितनी मुश्किल और चुनौती भरा रहेगा?

दरअसल भारत की जीडीपी में जिन राज्यों की सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी है उनमें सबसे पहले नंबर पर महाराष्ट्र और दूसरे नंबर पर तमिलनाडु और तीसरे नंबर पर गुजरात हैं। इन राज्यों पर कोरोना की बुरी मार पड़ी है, यहां संक्रमण के मामले और मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, इसने इन राज्यों की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। इसका सीधा असर शनिवार को जारी देश के ताज़ा जीडीपी आंकड़ों में भी देखने को मिला।

ध्यान देने की बात है कि जीडीपी के जो आँकड़े जारी किये गए है उसमें लॉकडाउन के सिर्फ 7 दिनों के आँकड़े शामिल है। लॉकडाउन में हुए आर्थिक नुकसान के आँकड़े अभी नहीं आये हैं। लॉकडाउन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था की तबाही के आँकड़े आने अभी बाकी है। मूडीज़ ने कहा है कि भारत के जीडीपी में 4 फीसदी की गिरावट आएगी। यानि अभी आर्थिक तबाही आनी बाकी है।

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई को भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाता है।  यहां बड़े कॉरपोरेट और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के मुख्यालय हैं।  व्यूवरशिप के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड मुंबई में है। महाराष्ट्र देश में कॉटन, गन्ने और केले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक भी है।

ये राज्य बड़े बाज़ारों से अच्छे से जुड़ा हुआ है, यहां चार अंतरराष्ट्रीय और सात घरेलू हवाई अड्डे हैं। क़रीब तीन लाख किलोमीटर लंबा रोड नेटवर्क और 6,165 किलोमीटर लंबा रेल नेटवर्क है। राज्य का समुद्रतट 720 किलोमीटर लंबा है और 55 बंदरगाह हैं। जहां देश का क़रीब 22 प्रतिशत कार्गो ट्रांसपोर्ट होता है।

2017-18 में महाराष्ट्र का जीएसडीपी यानी ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट $387 अरब रहा था और राज्य ने देश की जीडीपी में 15 प्रतिशत की हिस्सेदारी दी थी।

लेकिन कोरोना महामारी ने महाराष्ट्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। अब तक सबसे ज़्यादा मामले यहीं सामने आए हैं। कोरोना संक्रमण के मामलों को नियंत्रित करने के लिए लगाए लॉकडाउन का सीधा असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। सब काम धंधे ठप हो गए हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री बंद है। आयात और निर्यात का काम रुका हुआ है। इस सब से महाराष्ट्र राज्य को बहुत आर्थिक नुक़सान हुआ है।

भारत में सबसे ज़्यादा फ़ैक्ट्रियां तमिलनाडु में हैं।

तमिलनाडु का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर काफ़ी विविध है। यहां ऑटोमोबाइल, फ़ार्मा, टेक्सटाइल, चमड़े के उत्पाद, केमिकल समेत कई चीज़ों की बड़ी इंडस्ट्री हैं।

तमिलनाडु के पास बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर है। इस राज्य का रोड और रेल नेटवर्क काफ़ी अच्छा माना जाता है। साथ ही यहां सात हवाई अड्डे हैं।  तमिलनाडु के पास 1,076 किलोमीटर यानी देश का दूसरा सबसे लंबा समुद्र तट है। जहां 4 मेजर और 22 नॉन-मेजर पोर्ट हैं।

2017-18 में भारत से हुए कुल ऑटो निर्यात का 45 प्रतिशत तमिलनाडु से हुआ था। पैसेंजर वाहनों के मामले में भी तमिलनाडु एक्सपोर्ट हब है, पैसेंजर वाहनों में भारत के कुल निर्यात का 70 प्रतिशत तमिनलाडु करता है। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई भारत की ऑटोमोबाइल कैपिटल है। तमिलनाडु देश में सबसे ज़्यादा टायर बनाता है।

2018-19 में तमिलनाडु का जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट) $229.7 अरब रहा था। तमिलनाडु देश की दूसरी सबसे ज़्यादा जीडीपी वाला राज्य है।

लेकिन कोरोना ने तमिलनाडु को काफ़ी प्रभावित किया है जिससे बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से सभी आर्थिक गतिविधियां बंद हुईं। फ़ैक्ट्रियां बंद करनी पड़ी और बुरे दौर में चल रहा ऑटो सेक्टर और बुरी स्थिति में आ गया। इससे राज्य को आर्थिक तौर पर बहुत नुक़सान हुआ।  

गुजरात कच्चे तेल (तटवर्ती) और प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहां जामनगर में दुनिया का सबसे बड़ा पेट्रोलियम रिफाइनिंग हब है। इसके अलावा गुजरात प्रोसेस्ड डायमंड में ग्लोबल लीडर है। वहीं दुनिया में डेनिम का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

गुजरात सरकार की माने तों राज्य में 30 हज़ार से ज़्यादा फूड प्रोसेसिंग यूनिट है। 560 कोल्ड स्टोरेज और फिश प्रोसेसिंग यूनिट है।

नेशनल लॉजिस्टिक इंडेक्स 2019 के मुताबिक़, भारत में लॉजिस्टिक के मामले में गुजरात नंबर वन है। गुजरात में 49 बंदरगाह हैं, जिनमें एक मेजर पोर्ट है और 48 नॉन-मेजर पोर्ट हैं। गुजरात में 17 एयरपोर्ट भी हैं, जिनमें एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है।

2017-18 में गुजरात में $66.8 अरब का एक्सपोर्ट दर्ज किया गया। जो भारत के कुल निर्यात का 22 प्रतिशत से भी ज़्यादा था। 2016-17 के आंकड़ों को देखें तो गुजरात का जीएसडीपी $173 अरब रहा था।

प्रति व्यक्ति आय के मामले में दूसरे नंबर पर रहने वाला दिल्ली भारत के सबसे तेज़ी से आगे बढ़ रहे क्षेत्रों में से एक है। 2018-19 में इसका ग्रोथ रेट 12.82 प्रतिशत रहा था।

भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर्यटकों के बीच ख़ासी लोकप्रिय है।  साल भर यहां ट्रेड फेयर और कन्वेंशन भी होते रहते हैं। यहां आकर्षित रियल एस्टेट मार्केट भी है और एग्रोकेमिकल बेस्ड प्रोडक्ट को लेकर बड़ी संभावनाएं भी। दिल्ली और आसपास के नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) को पशुधन और डायरी प्रोडक्ट के लिए जाना जाता है। यहां की डायरी में हर दिन तीन मीलियन लीटर दूध की क्षमता है।

भारत का सबसे बड़ा मेट्रो रेल नेटवर्क भी दिल्ली में है। 2018-19 में दिल्ली की जीएसडीपी $109 अरब रही है।

लेकिन कोरोना वायरस के चलते मेट्रो रेल को बंद करना पड़ा। पर्यटन रुक गया। व्यापारिक गतिविधियां रुक गईं। इन सब से दिल्ली और फिर भारत की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी असर पड़ा।  

लेकिन कोरोना वायरस की मार के चलते भारत में इन सभी आर्थिक गतिविधियों को रोकना पड़ा। जिससे राज्यों को नुक़सान हुआ और इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा।  

सबसे ज़्यादा कोरोना मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए जा रहे हैं। उसके बाद तमिलनाडु, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्य हैं।

ज़्यादा मामले होने की वजह से यहां के ज़्यादातर इलाक़े रेड ज़ोन में रहे हैं। जहां पर लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां ना के बराबर रहीं है।  जिसकी वजह से काफ़ी आर्थिक नुक़सान हुआ है।

हालांकि लॉकडाउन से हुए नुक़सान को लेकर कोई आधिकारिक आँकड़ा नहीं आया है। लेकिन एसबीआई ग्रुप के चीफ़ इकोनॉमिक एडवाइज़र सौम्य कांती घोष ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक रिपोर्ट लिखी है, जिसे जीडीपी के आंकड़े जारी होने से पहले 26 मई को जारी किया गया था। इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि कोरोना महामारी की वजह से राज्यों की कुल जीएसडीपी यानी ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट में 30.3 लाख करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ है। जो कुल जीएसडीपी का 13.5% है।

सबसे ज़्यादा नुक़सान (50 प्रतिशत) रेड ज़ोन यानी जहां सबसे ज़्यादा मामले हैं, वहां हुआ। भारत के लगभग सभी बड़े ज़िले रेड ज़ोन में हैं। ऑरेंज और रेड ज़ोन को मिलाकर जितना नुक़सान हुआ वो कुल नुक़सान का 90 प्रतिशत है। ग्रीन ज़ोन में सबसे कम नुक़सान हुआ। क्योंकि इस ज़ोन की 80 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है, जहां लगभग सभी गतिविधियां खुली हुई थीं।

शनिवार को जब भारत की कुल जीडीपी के आंकड़े जारी हुए तो पता चला कि मौजूदा वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में, पिछले साल की तुलना में देश की विकास दर घटकर 3.1 प्रतिशत रह गई है। इससे पूरे वित्तीय वर्ष की जीडीपी दर 4.2 प्रतिशत पर आ गई, जो 11 साल का सबसे निचला स्तर है।

एसबीआई ग्रुप की चीफ़ इकोनॉमिक एडवाइज़र सौम्य कांती घोष की रिपोर्ट के मुताबिक़ राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि कुल जीडीपी में जो नुक़सान हुआ है, उसका 75 प्रतिशत 10 राज्यों की वजह से हुआ।

कुल नुक़सान में महाराष्ट्र की 15.6% हिस्सेदारी है, इसके बाद तमिलनाडु की जीडीपी नुक़सान में 9.4 प्रतिशत हिस्सेदारी है और गुजरात की 8.6% हिस्सेदारी है। इन्हीं तीन राज्यों में सबसे ज़्यादा कोरोना के मामले दर्ज किए गए हैं।

अगर सेक्टर के हिसाब से देखें तो सिर्फ़ कृषि में सुधार हुआ है। जबकि दूसरे बड़े सेक्टरों में अधिकतर में स्थिति बहुत बुरी रही है। मौजूदा वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के आंकड़ों पर नज़र डाले तों अधिकतर सेक्टरों की नेट सेल नकारात्मक रही है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में नेट सेल 15 रही है। बिजली के उपकरणों की नेट सेल 17 रही है। सिमेंट की नेट सेल 10 रही है। एफएमसीजी की नेट सेल 4 रही है। टेक्सटाइल की नेट सेल 30 रही। स्टील की नेट सेल 21 रही है।

हालांकि हेल्थकेयर, आईटी सेक्टर और फार्मा के आंकड़े कुछ सकारात्मक रहे हैं।

लॉकडाउन की वजह से आयात-निर्यात पर भी बुरा असर पड़ा, साथ ही पर्यटन से होने वाली आय भी रुक गई।

अब सवाल उठता है कि आगे की राह क्या है?

एसबीआई ग्रुप के चीफ़ इकोनॉमिक एडवाइज़र सौम्य कांती घोष के अनुसार लॉकडाउन से बहुत ही समझदारी से बाहर निकलना होगा। उनकी रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी के बाद भी कंसम्पशन पैटर्न में कुछ बदलाव आने की संभावना है।

नील्सन रिपोर्ट के मुताबिक़, दो तरह के ग्राहक कंसम्पशन डायनेमिक को तय करेंगे। एक मिडिल इनकम ग्रुप, जिनकी आय लॉकडाउन में ज़्यादा प्रभावित नहीं हुई और दूसरे वो, जिनकी नौकरी चली गई और जिन पर सबसे ज़्यादा बुरा असर पड़ा। बल्कि पहले वाला भी बहुत सोच समझकर ख़र्च करेगा, क्योंकि वो सोचेगा कि अब मेरी बारी हो सकती है। साथ ही वो सस्ती चीज़ें ख़रीदेंगे। प्रतिबंधों में ढील के बावजूद ज़्यादातर लोग घर का खाना खाएंगे। हालांकि हेल्थ, सेफ्टी और क्वालिटी पर लोग खर्च करेंगे।

अगर ऐसा होता है तो ज़ाहिर है कि आने वाले वक़्त में भी जीडीपी के आंकड़ों में काफ़ी उतार देखने को मिल सकता है। यानि भारत में आर्थिक तबाही का तूफ़ान आना अभी बाकी है! 

 

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